फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होली का त्योहार मनाया जाता है. होली के आठ दिन पहले होलाष्टक लग जाता है. इन आठ दिनों में ग्रहों की स्थिति बदलती रहती है. साथ ही इस दौरान शुभ कार्य करने वर्जित होते हैं.
आइए जानते हैं कि होलाष्टक को मानने के पीछे के कारण साथ ही इस दौरान शुभ कार्य करने वर्जित होते हैं. कि होलाष्टक को मनाने के पीछे कौन सी पौराणिक कथाएं हैं.
होलाष्टक की 17 मार्च से शुरुआत हो चुकी है और समापन 24 मार्च, रविवार को होगा. फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से होलाष्टक शुरू हो जाते हैं. होली के आठ दिन पहले से होलाष्टक मनाया जाता है. इस काल का विशेष महत्व है. इसी में होली की तैयारियां शुरू हो जाती हैं.
धार्मिक मान्यता के अनुसार, होलाष्टक की शुरुआत वाले दिन ही शिव जी ने कामदेव को भस्म कर दिया था. इस काल में हर दिन अलग-अलग ग्रह उग्र रूप में होते हैं इसलिए होलाष्टक में शुभ कार्य नहीं करते हैं. लेकिन, होलाष्टक के इन 8 दिनों में क्यों कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता है, चलिए जानते हैं कि इसके पीछे का धार्मिक कारण.
होलाष्टक की पहली कथा पौराणिक मान्यतानुसार, इस कथा के अनुसार भक्त प्रहलाद को उसके पिता राक्षस राज हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र की भक्ति को भंग करने और उसका ध्यान अपनी ओर करने के लिए लगातार 8 दिनों तक तमाम तरह की यातनाएं और कष्ट दिए थे.
इसलिए कहा जाता है कि होलाष्टक के इन 8 दिनों में किसी भी तरह का कोई शुभ कार्य नहीं करना चाहिए. होलिका दहन के दिन भक्त प्रहलाद बच जाता है और उसकी खुशी में होली का त्योहार मनाया जाता है.
होलाष्टक की दूसरी कथा शास्त्रों के अनुसार, भगवान शिव की तपस्या भंग करने का प्रयास करने पर कामदेव को शिव जी ने फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि को भस्म कर दिया था. कामदेव प्रेम के देवता माने जाते हैं, इनके भस्म होने पर संसार में शोक की लहर फैल गई थी.
कामदेव की पत्नी रति ने शिव जी से क्षमा याचना की और अपने पति कामदेव को पुनर्जीवन का आशीर्वाद मिला. रति को मिलने वाले इस आशीर्वाद के बाद होलाष्टक का अंत धुलंडी को हुआ. क्योंकि होली से पूर्व के आठ दिन रति ने अपने पति कामदेव के विरह में काटे. जिसके कारण इन दिनों में कोई शुभ काम नहीं किया जाता है.
होलाष्टक में करें ये शुभ कार्य होलाष्टक में दान का शुभ कार्य किया जा सकता है. साथ ही इस समय आप अन्न दान कर सकते हैं. होलाष्टक में आप ब्राह्मणों को भोजन करवा सकते हैं. साथ ही साथ नैमित्तिक कर्म भी कर सकते हैं. मूल रूप से ग्रहों की शांति के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जाप भी कर सकते हैं.