आइये जानते है कि भारत में दुर्लभ गोल्डन बाघ की तस्वीर क्यों वायरल हो रही है?
भारत में दुर्लभ ‘गोल्डन टाइगर’ (Golden Tiger), जिसे ‘स्ट्राबेरी टाइगर’ के नाम से भी जाना जाता है, वास्तव में एक असाधारण और अत्यंत दुर्लभ बाघ की प्रजाति है। इसकी दुर्लभता इसके अनूठे रंग के कारण है, जो एक जेनेटिक म्यूटेशन का परिणाम है। इस खास म्यूटेशन के कारण, बाघ का फर नारंगी के बजाय सोने जैसा पीला होता है और इस पर काली धारियाँ कम विशिष्ट और ज्यादा फैली हुई होती हैं।
कारण और विशेषताएँ
गोल्डन टाइगर की इस विशिष्टता का कारण एक रिसेसिव जीन है, जो तभी प्रकट होता है जब एक बाघ को अपने दोनों माता पिता से यह जीन प्राप्त होता है। इसके अलावा, यह जीन बहुत ही दुर्लभ होता है, जिसके कारण गोल्डन टाइगर्स भी अत्यंत दुर्लभ होते हैं।
प्राकृतिक आवास और संरक्षण
जंगली में, गोल्डन बाघों की उपस्थिति अत्यंत दुर्लभ है और अधिकांश रिपोर्ट्स बंधक या संरक्षित वातावरण से आती हैं। इनकी दुर्लभता और विशेष जीनेटिक मेकअप के कारण, गोल्डन टाइगर्स का संरक्षण और सुरक्षा विशेष ध्यान मांगती है। भारत में, वन्यजीव संरक्षण के विभिन्न प्रोग्राम्स और पहलों के तहत इन अनूठे बाघों के संरक्षण के लिए कार्य किया जाता है।
उदाहरण और दृष्टांत
भारत में गोल्डन टाइगर के दृश्य बहुत कम हैं, लेकिन कभीकभार सोशल मीडिया पर इनकी तस्वीरें वायरल होती रहती हैं। असम के काजीरंगा नेशनल पार्क में एक गोल्डन टाइगर को देखा गया था, जिसे सोशल मीडिया पर काफी प्रसिद्धि मिली थी।
निष्कर्ष
गोल्डन टाइगर भारतीय वन्यजीवन की अनूठी विविधता और प्राकृतिक विरासत का एक दुर्लभ और महत्वपूर्ण हिस्सा है। इनकी सुरक्षा और संरक्षण न केवल इस विशेष प्रजाति के लिए, बल्कि सम्पूर्ण बाघ आबादी और उसके आवास की विविधता और समृद्धि के लिए भी अत्यंत आवश्यक है।
दुर्लभ गोल्डन बाघ संरक्षणवादियों की चिंता का विषय क्यों है?
दुर्लभ गोल्डन बाघ विभिन्न कारणों से संरक्षणवादियों की चिंता का विषय हैं:
- अत्यंत दुर्लभता:
गोल्डन बाघों की दुर्लभता उन्हें संरक्षण की दृष्टि से उच्च प्राथमिकता प्रदान करती है। उनकी विशेष जेनेटिक विशेषता रिसेसिव जीनों के कारण होती है, और यह जीन केवल तभी प्रकट होता है जब दोनों मातापिता इसे पास करते हैं। इसके कारण, उनकी आबादी अत्यंत सीमित है।
- जीनेटिक विविधता का संरक्षण:
गोल्डन बाघों की विशिष्ट जेनेटिक स्थिति उन्हें वन्यजीव संरक्षण में एक दिलचस्प केस स्टडी बनाती है। उनका संरक्षण बाघों की जीनेटिक विविधता को बचाए रखने में मदद करता है, जो किसी भी प्रजाति के लिए स्वस्थ और टिकाऊ आबादी के लिए महत्वपूर्ण है।
- आवास का नुकसान और खंडन:
बाघों के लिए आवास का नुकसान और खंडन एक प्रमुख चिंता है। इससे उनके प्राकृतिक निवास स्थान में कमी आती है, जिससे उनकी आबादी पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है। गोल्डन बाघ जैसे दुर्लभ व्यक्ति विशेष रूप से संवेदनशील होते हैं क्योंकि उनकी छोटी आबादी और अनुकूली कमजोरियाँ उन्हें अधिक जोखिम में डालती हैं।
- शिकार और मानववन्यजीव संघर्ष:
बाघों का शिकार और मानववन्यजीव संघर्ष उनके जीवन के लिए सीधे खतरे पैदा करता है। गोल्डन बाघ अपने दुर्लभ रंग के कारण शिकारियों के लिए विशेष रूप से आकर्षक हो सकते हैं, जिससे उनकी संरक्षण स्थिति और भी जटिल हो जाती है।
- जनजागरूकता और शिक्षा:
गोल्डन बाघों और अन्य वन्यजीवों का संरक्षण न केवल विशिष्ट प्रजातियों को बचाने के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि यह जनजागरूकता और शिक्षा के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण की व्यापक चेतना को भी बढ़ावा देता है। गोल्डन बाघ इस प्रकार के प्रयासों के लिए एक प्रतीक बन सकते हैं।
संक्षेप में, गोल्डन बाघों का संरक्षण वन्यजीव संरक्षण के बड़े मुद्दों से जुड़ा हुआ है और यह जैव विविधता, पारिस्थितिकीय स्वास्थ्य, और प्राकृतिक विरासत के संरक्षण के लिए आवश्यक है।
खंडित आबादी
सुनहरे बाघ, जिन्हें गोल्डन बाघ भी कहा जाता है, एक जेनेटिक विशेषता के कारण उनके असामान्य रंग के लिए जाने जाते हैं। यह विशेषता एक विशिष्ट रिसेसिव जीन के कारण होती है, जो उनके फर को एक सुनहरा या पीलानारंगी रंग प्रदान करती है। गोल्डन बाघों की आबादी खंडित होने के कई कारण हैं, जिनमें आवास की हानि, आनुवंशिक अलगाव, और मानवीय गतिविधियाँ शामिल हैं।
आवास की हानि और खंडन:
- वनों की कटाई: वनों की कटाई और भूमि का उपयोग परिवर्तन वन्यजीवों के लिए उपलब्ध आवास को कम कर देता है। इससे गोल्डन बाघों की आबादी खंडित हो जाती है, जिससे वे छोटे, अलगथलग पॉपुलेशन में बँट जाते हैं।
- आवास का खंडन: जब वन्यजीवों के आवास खंडित होते हैं, तो जानवरों की आवाजाही सीमित हो जाती है, जिससे उनके बीच जेनेटिक विविधता में कमी आती है। यह आनुवंशिक अलगाव जीवित रहने की उनकी क्षमता और अनुकूलन क्षमता को प्रभावित करता है।
आनुवंशिक अलगाव:
- आनुवंशिक बोतलगर्दी: छोटी आबादी में, जेनेटिक विविधता सीमित होती है, जिससे आनुवंशिक रोगों और कमजोरियों का जोखिम बढ़ जाता है। यह आनुवंशिक बोतलगर्दी आबादी के जीवन और वृद्धि पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।
- प्रजनन क्षमता: आनुवंशिक अलगाव से प्रजनन क्षमता में गिरावट आ सकती है, क्योंकि व्यक्तियों के बीच जेनेटिक विविधता की कमी होती है। यह आबादी के स्वास्थ्य और जीवित रहने की क्षमता को कम कर सकती है।
मानवीय गतिविधियाँ:
- शिकार और अवैध व्यापार: गोल्डन बाघों के लिए शिकार और अवैध व्यापार एक गंभीर खतरा है, क्योंकि उनकी दुर्लभता उन्हें शिकारियों के लिए विशेष रूप से आकर्षक बनाती है।
- मानववन्यजीव संघर्ष: मानव आबादी के विस्तार और वन्यजीव आवास में हस्तक्षेप से मानववन्यजीव संघर्ष बढ़ता है, जो अक्सर जानवरों की मृत्यु या हताहत होने का कारण बनता है।
गोल्डन बाघों की खंडित आबादी के इन पहलुओं को समझना और उनका सामना करना संरक्षण प्रयासों के लिए महत्वपूर्ण है, ताकि इस असाधारण उपप्रजाति को संरक्षित किया जा सके और उनकी आबादी को स्थिर और स्वस्थ रखा जा सके।
दुर्लभ गोल्डन बाघों को कैसे संरक्षित किया जा सकता है?
दुर्लभ गोल्डन बाघों के संरक्षण के लिए कई रणनीतियाँ और पहलें आवश्यक हैं, जो उनकी आवास सुरक्षा, जेनेटिक विविधता के संरक्षण, और मानववन्यजीव संघर्ष को कम करने पर केंद्रित होती हैं। निम्नलिखित कुछ महत्वपूर्ण उपाय हैं जो गोल्डन बाघों के संरक्षण में मदद कर सकते हैं
दुर्लभ गोल्डन बाघों का संरक्षण एक जटिल कार्य है जो विभिन्न स्तरों पर कार्यों और रणनीतियों की आवश्यकता होती है। निम्नलिखित कुछ महत्वपूर्ण कदम हैं जो इन असाधारण जीवों के संरक्षण में मदद कर सकते हैं:
- आवास संरक्षण:
वनों की सुरक्षा: गोल्डन बाघों के आवासों को संरक्षित करना और उनके विस्तार के लिए प्रयास करना महत्वपूर्ण है। वनों की कटाई और आवास विखंडन को रोकना इसमें शामिल है।
वन संरक्षण: बाघों के प्राकृतिक आवास को संरक्षित करना और वनों की कटाई को रोकना।
आवास बहाली: खंडित आवासों को जोड़ने और बहाल करने के लिए परियोजनाएँ चलाना।
सुरक्षित क्षेत्र: वन्यजीव अभयारण्य, राष्ट्रीय उद्यान, और टाइगर रिजर्व बनाना और उन्हें बढ़ावा देना।
वन्यजीव गलियारे: वन्यजीव गलियारों का निर्माण करके आवास खंडन को कम किया जा सकता है, जो विभिन्न आवास क्षेत्रों को जोड़ता है और जानवरों को सुरक्षित रूप से घूमने में मदद करता है।
- शिकार और अवैध व्यापार पर नियंत्रण:
कानून प्रवर्तन: शिकार और अवैध व्यापार को रोकने के लिए सख्त कानूनी उपायों और प्रवर्तन की आवश्यकता होती है।
जागरूकता: स्थानीय समुदायों और व्यापक जनता को जागरूक करना, ताकि वे गोल्डन बाघों के संरक्षण के महत्व को समझ सकें और इसमें योगदान दे सकें। स्थानीय समुदायों को शिक्षित करना और उन्हें वन्यजीव संरक्षण में सक्रिय भागीदार बनाना।
संघर्ष प्रबंधन: संघर्ष कम करने के लिए प्रभावी उपाय लागू करना, जैसे कि मवेशियों के लिए सुरक्षित चरागाह और बाघों को रोकने के लिए बाड़े।
- आनुवंशिक विविधता को बनाए रखना:
प्रजनन कार्यक्रम: विशेष रूप से निर्मित प्रजनन कार्यक्रमों के माध्यम से आनुवंशिक विविधता को बनाए रखना, जिससे आनुवंशिक बोतलगर्दी और अन्य आनुवंशिक समस्याओं को कम किया जा सकता है।जेनेटिक विविधता को बढ़ाने के लिए कैप्टिव ब्रीडिंग प्रोग्राम और विभिन्न आबादी के बीच जेनेटिक सामग्री का आदानप्रदान।
जेनेटिक अध्ययन: गोल्डन बाघों की जेनेटिक संरचना का अध्ययन करना ताकि उनके संरक्षण के लिए बेहतर रणनीतियाँ विकसित की जा सकें।
- संरक्षण शिक्षा
शिक्षा कार्यक्रम: स्कूलों और समुदायों में शिक्षा कार्यक्रमों के माध्यम से लोगों को वन्यजीव संरक्षण के महत्व के बारे में जागरूक करना।
संरक्षण भागीदारी: स्थानीय समुदायों को संरक्षण प्रयासों में शामिल करना, ताकि वे वन्यजीव संरक्षण के प्रति अधिक समर्पित हो सकें।
- वैज्ञानिक अनुसंधान:
आबादी अध्ययन: गोल्डन बाघों की आबादी और उनके आवास पर व्यापक अध्ययन, ताकि संरक्षण प्रयासों को और अधिक प्रभावी बनाया जा सके।
दुर्लभ गोल्डन बाघों के संरक्षण के लिए कई रणनीतियाँ और पहलें आवश्यक हैं, जो उनकी आवास सुरक्षा, जेनेटिक विविधता के संरक्षण, और मानववन्यजीव संघर्ष को कम करने पर केंद्रित होती हैं। निम्नलिखित कुछ महत्वपूर्ण उपाय हैं जो गोल्डन बाघों के संरक्षण में मदद कर सकते हैं:
- कानूनी संरक्षण और नीतियाँ:
कानूनी सुरक्षा: वन्यजीव संरक्षण कानूनों को मजबूती से लागू करना और अवैध शिकार तथा व्यापार पर कड़ी निगरानी रखना।
अंतरराष्ट्रीय सहयोग: वन्यजीव संरक्षण में अंतरराष्ट्रीय सहयोग और समझौते को बढ़ावा देना।
इन पहलों और रणनीतियों को लागू करके, हम गोल्डन बाघों के संरक्षण में सफलता हासिल कर सकते हैं और इस दुर्लभ और अद्वितीय जीव को भविष्य के लिए संरक्षित कर सकते हैं।
दुर्लभ गोल्डन बाघों की आबादी भारत में कितनी है
गोल्डन बाघों की सटीक आबादी की जानकारी उपलब्ध नहीं है, क्योंकि वे अत्यंत दुर्लभ होते हैं और उनकी गणना करना मुश्किल है। गोल्डन बाघ, जो कि बंगाल बाघों (Panthera tigris tigris) का एक जेनेटिक विकल्प है, मुख्य रूप से कैप्टिव ब्रीडिंग प्रोग्राम्स में पाए जाते हैं और जंगल में उनका अस्तित्व अत्यंत ही अपवादिक है।
वन्यजीव संरक्षणवादियों और अनुसंधानकर्ताओं के लिए इनकी आबादी का आंकलन करना कठिन है क्योंकि यह जेनेटिक विशेषता बहुत कम आवृत्ति में होती है। जंगली में गोल्डन बाघों की देखभाल बहुत ही दुर्लभ घटना है, और कुछ ही मामले दस्तावेजीकृत हैं।
जब भी जंगली में गोल्डन बाघ की दृष्टि होती है, यह खबरें सुर्खियाँ बटोरती हैं, जैसे कि 2020 में असम के काजीरंगा नेशनल पार्क में देखे गए गोल्डन बाघ का मामला। हालांकि, इन दुर्लभ घटनाओं से इनकी वास्तविक आबादी के आंकलन में मदद नहीं मिलती।
इसलिए, गोल्डन बाघों की भारत में आबादी की सटीक संख्या का पता लगाना वर्तमान में संभव नहीं है, और उनकी दुर्लभता उनके संरक्षण को और भी महत्वपूर्ण बनाती है।
दुर्लभ गोल्डन बाघ मुख्य रूप से कैप्टिव (बंदी) अवस्था में पाए जाते हैं, जैसे चिड़ियाघरों में, क्योंकि उनकी विशेष जेनेटिक विशेषता, जिसे “वाइडबैंड एग्यूटी म्यूटेशन” कहा जाता है, बहुत ही दुर्लभ होती है और प्राकृतिक वन्यजीवन में इसका होना असामान्य है। हालांकि, वन्यजीवन में भी इनकी उपस्थिति के कुछ विरले मामले सामने आए हैं, जो भारत में दर्ज किए गए हैं।
जंगली में, गोल्डन बाघों की दुर्लभ संख्या का एक उल्लेखनीय अवलोकन भारत में किया गया था:
असम के काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में: 2020 में, एक गोल्डन बाघ की तस्वीर वायरल हुई थी, जिसे काजीरंगा नेशनल पार्क में देखा गया था। यह विशेष देखा जाना बहुत ही असामान्य था और इसने वन्यजीव प्रेमियों और संरक्षणवादियों में काफी उत्साह पैदा किया था।
इसके अलावा, भारत के अन्य हिस्सों में भी गोल्डन बाघों को देखे जाने की संभावना है, लेकिन इनकी दुर्लभता के कारण, ऐसे अवलोकन असामान्य हैं। गोल्डन बाघों का अधिकांश दृश्य संदर्भ कैप्टिव परिस्थितियों में होता है, जहां उन्हें संरक्षण और शिक्षा के उद्देश्यों के लिए रखा जाता है। वन्यजीवन में उनकी दुर्लभ उपस्थिति उनके संरक्षण के प्रयासों और आवास के संरक्षण की महत्वपूर्णता को और अधिक महत्व देती है।
भारत में बाघों की अन्य प्रजातियां?
भारत में, बाघ (Panthera tigris) मुख्य रूप से एक ही प्रजाति के अंतर्गत आते हैं, लेकिन इस प्रजाति के विभिन्न उप-प्रजातियां होती हैं। विश्वव्यापी स्तर पर बाघों की विभिन्न उप-प्रजातियां हैं, लेकिन भारत में मुख्य रूप से बंगाल टाइगर (Panthera tigris tigris) पाया जाता है। पिछले कुछ समय से, बाघों की कुछ उप-प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं या विलुप्तप्राय हैं, और बंगाल टाइगर भारत में सर्वाधिक संख्या में पाया जाने वाला बाघ है।
भारत के अलावा, दुनिया भर में बाघों की अन्य उप-प्रजातियां हैं, जैसे कि:
साइबेरियन टाइगर
इंडोचाइनीज टाइगर
मलायन टाइगर
सुमात्राई टाइगर
- साइबेरियन टाइगर (Panthera tigris altaica): रूस के साइबेरिया में पाया जाता है और यह सबसे बड़ी उप-प्रजाति मानी जाती है।
साइबेरियन टाइगर, जिसे अमूर टाइगर (Panthera tigris altaica) भी कहा जाता है, बाघों की एक उप-प्रजाति है जो मुख्य रूप से रूस के सुदूर पूर्व में, विशेष रूप से साइबेरिया के अमूर बेसिन क्षेत्र में पाई जाती है। यह बाघों की सबसे बड़ी उप-प्रजाति है, जिसकी पुरुष व्यक्ति की लंबाई 3 मीटर (लगभग 10 फीट) तक हो सकती है और वज़न 300 किलोग्राम (लगभग 660 पाउंड) तक हो सकता है।
साइबेरियन टाइगर की कुछ मुख्य विशेषताएं हैं:
– आवास: ये मुख्य रूप से मिश्रित और शंकुधारी वनों में रहते हैं।
– आहार: ये शिकार पर निर्भर रहते हैं और उनका आहार मुख्य रूप से हिरण, जंगली सूअर, एल्क और यहां तक कि भालू जैसे बड़े स्तनपायी होते हैं।
– संरक्षण स्थिति: इस उप-प्रजाति को IUCN रेड लिस्ट में खतरे में पड़ी प्रजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया है। हालांकि, संरक्षण प्रयासों के चलते, साइबेरियन टाइगर की आबादी में हाल के वर्षों में कुछ स्थिरता आई है।
संरक्षण के प्रयासों में शिकार को रोकना, आवास का संरक्षण, और आबादी की निगरानी शामिल हैं। रूस सरकार और विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संरक्षण संगठनों द्वारा इन प्रयासों को मजबूती से लागू किया जा रहा है। साइबेरियन टाइगर का संरक्षण न केवल इस प्रजाति के लिए, बल्कि समूचे ईकोसिस्टम के संतुलन के लिए भी महत्वपूर्ण है।
- इंडोचाइनीज टाइगर (Panthera tigris corbetti): म्यांमार, थाईलैंड, लाओस, वियतनाम, कंबोडिया और दक्षिणी चीन में पाया जाता है।
इंडोचाइनीज टाइगर (Panthera tigris corbetti) बाघों की एक उप-प्रजाति है, जो मुख्य रूप से दक्षिण पूर्व एशिया के जंगलों में पाई जाती है। इसका नाम वाइल्डलाइफ कंजर्वेशनिस्ट जिम कॉर्बेट के नाम पर रखा गया है। इंडोचाइनीज टाइगर वियतनाम, लाओस, कंबोडिया, थाईलैंड, और म्यांमार के कुछ हिस्सों में पाया जाता है। चीन के युन्नान प्रांत में भी कुछ आबादी मौजूद हो सकती है।
इंडोचाइनीज टाइगर बंगाल टाइगर से छोटा होता है, लेकिन साइबेरियन टाइगर से बड़ा होता है। इसका वजन आमतौर पर 150 से 195 किलोग्राम (लगभग 330 से 430 पाउंड) के बीच होता है। इसके फर का रंग गहरा होता है, और धारियाँ अधिक संकीर्ण और घनी होती हैं।
इंडोचाइनीज टाइगर मुख्य रूप से एकांतप्रिय और रात्रिचर होते हैं। ये विविध प्रकार के शिकार पर निर्भर करते हैं, जिसमें बड़े से लेकर छोटे स्तनधारी जैसे हिरण, जंगली सूअर और बड़े पक्षी शामिल हैं।
इंडोचाइनीज टाइगर का सामना कई खतरों से है, जिसमें आवास का नुकसान, शिकार की कमी, और मानव द्वारा शिकार शामिल हैं। इस उप-प्रजाति को अंतर्राष्ट्रीय संघ द्वारा संरक्षण की स्थिति में ‘खतरे में’ (Endangered) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
संरक्षण प्रयासों में इसके आवास की रक्षा, शिकारियों के खिलाफ कानूनी संरक्षण प्रदान करना, और जंगली जानवरों की तस्करी को रोकना शामिल है। इन प्रयासों का उद्देश्य इंडोचाइनीज टाइगर की घटती आबादी को स्थिर करना और बढ़ाना है।
- मलायन टाइगर (Panthera tigris jacksoni): मलेशिया के मलय प्रायद्वीप में पाया जाता है।
मलायन टाइगर (Panthera tigris jacksoni) बाघों की एक उप-प्रजाति है, जो मुख्य रूप से मलेशिया के मलाय प्रायद्वीप में पाई जाती है। यह उप-प्रजाति पहली बार 2004 में वैज्ञानिक रूप से मान्यता प्राप्त हुई, जब जेनेटिक विश्लेषण ने दिखाया कि यह इंडोचाइनीज टाइगर से अलग है। इसे अपने वैज्ञानिक नाम ‘jacksoni’ पीटर जैक्सन के सम्मान में मिला, जो एक प्रसिद्ध टाइगर विशेषज्ञ हैं।
मलायन टाइगर का आकार अन्य टाइगर उप-प्रजातियों के समान होता है, लेकिन यह आमतौर पर मध्यम आकार का होता है। पुरुष टाइगर का वजन लगभग 120 से 180 किलोग्राम (लगभग 260 से 400 पाउंड) तक हो सकता है, जबकि मादा टाइगर थोड़ी हल्की होती हैं। इसके फर पर धारियाँ अन्य उप-प्रजातियों की तुलना में अधिक संकीर्ण और घनी होती हैं।
मलायन टाइगर मुख्य रूप से घने जंगलों में रहते हैं और इनकी आहार विविधता में स्तनधारी जानवर जैसे हिरण, बोर, और छोटे एशियाई गौर शामिल होते हैं। यह एक शिकारी प्रजाति है जो अपने आवास में जैव विविधता के संतुलन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
दुर्भाग्य से, मलायन टाइगर गंभीर रूप से खतरे में हैं, और उनकी आबादी में पिछले कुछ दशकों में काफी गिरावट आई है। आवास का नुकसान, अवैध शिकार, और मानव-टाइगर संघर्ष मुख्य कारण हैं जिनके चलते इस प्रजाति की संख्या घट रही है। मलेशियाई सरकार और विभिन्न संरक्षण संगठन संरक्षण कार्यक्रमों और जागरूकता अभियानों के माध्यम से मलायन टाइगर की रक्षा के लिए काम कर रहे हैं। इन प्रयासों का लक्ष्य इस उप-प्रजाति की आबादी को स्थिर करना और बढ़ाना है।
- सुमात्राई टाइगर (Panthera tigris sumatrae): इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप पर पाया जाता है।
सुमात्राई टाइगर (Panthera tigris sumatrae) बाघों की एक उप-प्रजाति है जो केवल इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप पर पाई जाती है। यह वर्तमान में जीवित बची सबसे छोटी टाइगर उप-प्रजातियों में से एक है और इसे अंतर्राष्ट्रीय संरक्षण संस्थाओं द्वारा गंभीर रूप से संकटग्रस्त (Critically Endangered) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
सुमात्राई टाइगर की विशिष्ट विशेषताओं में इसका छोटा आकार, गहरे नारंगी रंग का फर और अन्य टाइगर उप-प्रजातियों की तुलना में घने और बारीक धारियाँ शामिल हैं। पुरुष सुमात्राई टाइगर का वजन लगभग 100 से 140 किलोग्राम (220 से 310 पाउंड) तक होता है, जबकि मादा का वजन इससे कुछ कम होता है। इसकी छोटी आकृति और हल्का वजन उसे घने जंगलों में रहने और शिकार करने के लिए अनुकूल बनाते हैं।
सुमात्राई टाइगर मुख्यतः घने वर्षावनों में निवास करता है और इसकी आहार विविधता में हिरण, जंगली सूअर, और छोटे स्तनधारियों जैसे जानवर शामिल होते हैं। यह अपने विशिष्ट आवास में पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
सुमात्राई टाइगर के सामने मुख्य खतरे आवास का विनाश, अवैध शिकार, और मानव-टाइगर संघर्ष हैं। इसके आवास का विनाश मुख्य रूप से कृषि, पेपर, पाम ऑयल प्लांटेशन, और खनन के लिए वनों की कटाई के कारण होता है। संरक्षण प्रयासों में इसके आवास की रक्षा, अवैध शिकार के खिलाफ कानूनी संरक्षण, और स्थानीय समुदायों के साथ सहयोग शामिल हैं ताकि सुमात्राई टाइगर की आबादी को स्थिर किया जा सके और इसे विलुप्त होने से बचाया जा सके।
विगत में, कुछ अन्य उप-प्रजातियां भी थीं, जैसे कि कैस्पियन टाइगर (Panthera tigris virgata) और जावान टाइगर (Panthera tigris sondaica), लेकिन ये अब विलुप्त हो चुकी हैं।
कैस्पियन टाइगर (Panthera tigris virgata), जिसे पर्शियन टाइगर भी कहा जाता था, एक विलुप्त टाइगर उप-प्रजाति है जो मुख्य रूप से ईरान, इराक, अफगानिस्तान, तुर्की, मंगोलिया, कजाकिस्तान, काकेशस, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान के क्षेत्रों में पाई जाती थी। यह उप-प्रजाति 1970 के दशक तक विलुप्त हो गई थी, और इसके विलुप्त होने के प्रमुख कारण आवास का विनाश, बड़े शिकार के जानवरों की संख्या में कमी, और मनुष्यों द्वारा अत्यधिक शिकार करना थे।
कैस्पियन टाइगर बड़े और शक्तिशाली जानवर थे, जिनकी लंबाई और वजन में काफी विविधता होती थी। इनका फर गहरे नारंगी रंग का होता था जिस पर काली धारियाँ होती थीं। इनकी धारियाँ अन्य टाइगर उप-प्रजातियों की तुलना में घनी और अधिक विशिष्ट होती थीं।
कैस्पियन टाइगर मुख्य रूप से नदी के किनारे के जंगलों, झीलों के आसपास के इलाकों और उच्च घास वाले मैदानों में रहते थे, जहाँ वे हिरण, जंगली सूअर, और अन्य बड़े जानवरों का शिकार करते थे। इनका विलुप्त होना उनके प्राकृतिक आवास और शिकार जानवरों के संरक्षण के महत्व को दर्शाता है।
आधुनिक वैज्ञानिक अध्ययनों और जेनेटिक विश्लेषणों ने यह संकेत दिया है कि कैस्पियन टाइगर और अमूर टाइगर (जिसे साइबेरियन टाइगर भी कहा जाता है) के बीच जेनेटिक समानताएं हैं, जिससे यह संभावना बनती है कि इन दो उप-प्रजातियों को भविष्य में पुनः स्थापित करने की कोशिशों में अमूर टाइगर का उपयोग किया जा सकता है।
भारत में, बाघ संरक्षण के लिए विभिन्न पहल की जाती हैं, जैसे कि प्रोजेक्ट टाइगर, जिसका उद्देश्य बाघों के आवास को संरक्षित करना और उनकी संख्या में वृद्धि करना है।